Go To Mantra

त्वमी॑शिषे वसुपते॒ वसू॑नां॒ त्वं मि॒त्राणां॑ मित्रपते॒ धेष्ठ॑:। इन्द्र॒ त्वं म॒रुद्भि॒: सं व॑द॒स्वाध॒ प्राशा॑न ऋतु॒था ह॒वींषि॑ ॥

English Transliteration

tvam īśiṣe vasupate vasūnāṁ tvam mitrāṇām mitrapate dheṣṭhaḥ | indra tvam marudbhiḥ saṁ vadasvādha prāśāna ṛtuthā havīṁṣi ||

Mantra Audio
Pad Path

त्वम्। ई॒शि॒षे॒। व॒सु॒ऽप॒ते॒। वसू॑नाम्। त्वम्। मि॒त्राणा॑म्। मि॒त्र॒ऽप॒ते॒। धेष्ठः॑। इन्द्र॑। त्वम्। म॒रुत्ऽभिः॑। सम्। व॒द॒स्व॒। अध॑। प्र। अ॒शा॒न॒। ऋ॒तु॒ऽथा। ह॒वींषि॑ ॥ १.१७०.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:170» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:10» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:5


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (वसूनाम्) किया है चौबीस वर्ष ब्रह्मचर्य जिन्होंने और जो पृथिव्यादिकों के समान सहनशील हैं उन (वसुपते) हे धनों के स्वामी ! (त्वम्) तुम (ईशिषे) ऐश्वर्यवान् हो वा ऐश्वर्य्य बढ़ाते हो। हे (मित्राणाम्) मित्रों में (मित्रपते) मित्रों के पालनेवाले श्रेष्ठ मित्र ! (त्वम्) तुम (धेष्ठः) अतीव धारण करनेवाले होते हो। हे (इन्द्र) परमैश्वर्य्य के देनेवाले ! (त्वम्) तुम (मरुद्भिः) पवनों के समान वर्त्तमान विद्वानों के साथ (संवदस्व) संवाद करो। (अध) इसके अनन्तर (ऋतुथा) ऋतु-ऋतु के अनुकूल (हवींषि) खाने योग्य अन्नों को (प्र, अशान) अच्छे प्रकार खाओ ॥ ५ ॥
Connotation: - जो धनवान् सबके मित्र बहुतों के साथ संस्कार किये हुए अन्नों को खाते और विद्या से परिपूर्ण विद्वानों के साथ संवाद करते हैं, वे समर्थ और ऐश्वर्य्यवान् होते हैं ॥ ५ ॥इस सूक्त में विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥यह एकसौ सत्तरवाँ सूक्त और दशवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे वसूनां वसुपते त्वमीशिषे। हे मित्राणां मित्रपते त्वं धेष्ठो भवसि। हे इन्द्रं त्वं मरुद्भिः सह संवदस्वाध त्वमृतुथा हवींषि प्राशान ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (ईशिषे) ऐश्वर्यं करोषि (वसुपते) वसूनां धनानां पालक (वसूनाम्) कृतचतुर्विंशतिवर्षब्रह्मचर्याणां पृथिव्यादिवत् क्षमादिधर्मयुक्तानाम् (त्वम्) (मित्राणाम्) सुहृदाम् (मित्रपते) मित्राणां पालक (धेष्ठः) अतिशयेन धाता (इन्द्र) परमैश्वर्यप्रद (त्वम्) (मरुद्भिः) वायुवद्वर्त्तमानैर्विद्वद्भिः सह (सम्) (वदस्व) (अध) अनन्तरम् (प्र) (अशान) भुङ्क्ष्व (ऋतुथा) ऋत्वनुकूलानि (हवींषि) अत्तुं योग्यान्यन्नानि ॥ ५ ॥
Connotation: - ये धनवन्तः सर्वेषां सुहृदो बहुभिः सह संस्कृतान्यन्नानि भुञ्जते विद्यावृद्धविद्वद्भिः सह संवदन्ते ते समर्था ऐश्वर्यवन्तो जायन्ते ॥ ५ ॥।अस्मिन् सूक्ते विद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥इति सप्तत्युत्तरं शततमं सूक्तं दशमो वर्गश्च समाप्तः ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जे धनवान, सर्वांचे मित्र, संस्कार केलेले अन्न खातात व विद्येने परिपूर्ण असलेल्या विद्वानांबरोबर संवाद साधतात ते समर्थ व ऐश्वर्यवान असतात. ॥ ५ ॥